ग़ज़ल
नफा हो या मिले नुकसान हरगिज़ झूट मत बोलो
बना लो अपनी इक पहचान हरगिज़ झूट मत बोलो
ये झूटी शान-ओ-शुकात एक दिन बर्बाद कर देगी
करो खुद पर ज़रा अहसान हरगिज़ झूट मत बोलो
पता चल जायेगा मरने पे क्या पाया है क्या खोया
यहाँ चन्द रोज़ के मेहमान,हरगिज़ झूट मत बोलो
कमाई कम भी अच्छी है अगर ईमानदारी हो
खरीदो बेचो जब सामान हरगिज़ झूट मत बोलो
रियाज़ 'आशना'
नफा हो या मिले नुकसान हरगिज़ झूट मत बोलो
बना लो अपनी इक पहचान हरगिज़ झूट मत बोलो
ये झूटी शान-ओ-शुकात एक दिन बर्बाद कर देगी
करो खुद पर ज़रा अहसान हरगिज़ झूट मत बोलो
पता चल जायेगा मरने पे क्या पाया है क्या खोया
यहाँ चन्द रोज़ के मेहमान,हरगिज़ झूट मत बोलो
कमाई कम भी अच्छी है अगर ईमानदारी हो
खरीदो बेचो जब सामान हरगिज़ झूट मत बोलो
रियाज़ 'आशना'
these are my favorite ghazals. Please give your opinions.
ReplyDelete